Collection Shayari

एक चादर में लिपटे दो बदन

Friday, January 29, 2016



एक चादर में लिपटे दो बदन
तेरी चांदनी में नहाऊं मैं और हर तरफ बस अंधेरा हो,
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो
तेरे मखमली बदन में,खुशबुऒं के चमन में
सदियों तक वो रात चले,सदियों दूर सवेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन , एक तेरा हो एक मेरा हो
तेरे होठों को सिल दूं मैं अपने होठों के धागे से
एक सन्नाटे में खामोशी से, तेरी बाहों ने मुझको घेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, क तेरा हो और एक मेरा हो
दोनों लिपटें एक दूजे से, गांठ सी लग जाए बदनों में
मेरे जिस्म में घर मिल जाए तुझे, तेरे जिस्म में मेरा बसेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो
आज मन कहता है कि कुछ ऐसा हो, तू बन जाए मैं , मैं बन जाऊं तू
बिस्तर पे तेरे मेरे सिवा,सिर्फ ज़ुनून और खामोशी का डेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो

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