कैसे बताऊ तुम्हे,
तुम मेरे लिये कौन हो…🦋
तूम धडकनो का गीत हो…
जिवन क तूम संगीत हो..
तूम जिंदगी…
तूम बंदगी…
तूम रोशनी…
तूम ताजगी…
तूम हर खुशी…
तूम प्यार…
तूम प्रित हो…
तूम मनमित हो…
आखों मे तूम…
यादों में तूम…
सासों में तूम…
आहो में तूम…
निंदो में तूम…
ख्वाबो में तूम…
तूम हो मेरी हर बात में…
तूम हो मेरी दिन-रात में…
तूम सुभाह में…
तूम शाम में…
तूम सोच में…
तूम काम में…
मेरे लिये पानाभी तूम…
मेरे लिये खोनाभी तूम…
मेरे लिये हसना भी तूम…
मेरे लिये रोनाभी तूम…
जागना-सोनाभी तूमही हो…
जाउ कही… देखु कही…
तूम हो वहा… तूम हो वही…
🤷🏻♂कैसे बताऊ तुम्हे,🦋
तूम बिन तो मैं कुछभी नही…
कैसे बताऊ मैं तुम्हे…
मेरे लिये तूम कौन हो…
तुम्हारा ये रूप है…
जिंदगी की धूप है…
चंदन से तराश्या है बदन…
बेहेती है जिसमें अगन…
ये शोखिंया…
ये मस्तीयां…
तुमको हवाओसे मिली…
जुल्फ़े घटाओसे मिली…
होटो में कलिया खिल गई…
आखोंको झिल मिल गई…
चेहेरे में सिमटी है चांदनी…
तुम्हारे आवाज में है रागिनी…
शिशे के जैसा अंग है…
फूलोके जैसा रंग है…
नदियोंके जैसी चाल है…
क्या हुस्न है…
क्या हाल है…
ये जिस्मकी रंगिनीयां…
जैसे हजारो तितलीयां…
बाहो की ये गोलाईयां…
आचल में ये परछाईया…
ये नगरीयां है खाब की…
🤷🏻♂कैसे बताऊ मै तुम्हे…🦋
हालत दिल-ए-बेताब की…
कैसे बताऊ मै तुम्हे…
मेरे लिये तुम धर्म हो…
मेरे लिये इमान हो…
तुम्ही इबादत हो मेरी…
तुम्ही तो चाहत हो मेरी…
तुम्ही मेरा अर्मान हो…
तक्ता हु मैं जिसे हर पल…
तुम्ही तो वो तसविर हो…
तुम्ही मेरी तकदीर हो….
तूम सितारा हो मेरा…
तुम्ही नजारा हो मेरा…
तूम ध्यान मे हो मेरे…
क्यू मूझे घेरे हो मुझे तूम…
पुरब में तूम…
पश्चिम तूम…
उत्तर में तूम…
दक्शिण में तूम…
सारे मेरे जिवन में तूम…
हर पल में तूम…
हर चिल में तूम…
मेरे लिये रस्ता भी तूम…
मेरे लिये मंजिल भी तूम…
मेरे लिये सागर भी तूम…
मेरे लिये साहिल भी तूम…
में देखता बस तूमको हु…
में सोचता बस तूमको हु…
में जानता बस तूमको हु…
में मानता बस तूमको हु…
तुम्ही मेरी पेहेचान हो…
कैसे बताऊ मैं तुम्हे…
देवी हो तुम मेरे लिये…
मेरे लिये तु भगवान हो…
🤷🏻♂कैसे बताऊ मैं तुम्हे…🦋
💖मेरे लिये तुम कौन हो…😌
*ज़मीन और मुक़द्दर*
*की एक ही फितरत है*
*जो भी बोया है वो*
*निकलना तो तय है !!*
*✔️सुप्रभात नमस्कार*
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एक स्त्री के योनि से जन्म लेने के बाद उसके वक्षस्थल से निकले दूध से अपनी भूख
प्यास मिटाने वाला इंसान बड़ा होते ही औरत से इन्हीं दो अंगो की चाहत रखता है,
और अगर असफल होता है, तो इसी चाहत में वीभत्स तरीको को अंजाम देता है...!
बलात्कार और फिर हत्या...!
जननी वर्ग के साथ इस तरह की मानसिकता क्यूँ...?
वध होना चाहिए ऐसी दूषित मानसिकता के लोगों का.....
मेरे दूध का कर्ज़ मेरे ही खून से चुकाते हो
कुछ इस तरह तुम अपना पौरुष दिखाते हो
दूध पीकर मेरा तुम इस दूध को ही लजाते हो
वाह रे पौरुष तेरा तुम खुद को पुरुष कहाते हो
हर वक्त मेरे सीने पर नज़र तुम जमाते हो
इस सीने में छुपी ममता क्यों देख नहीं पाते हो
इक औरत ने जन्मा ,पाला -पोसा है तुम्हें बड़े होकर ये बात क्यों भूल जाते हो
तेरे हर एक आँसू पर हज़ार खुशियाँ कुर्बान कर देती हूँ मैं
क्यों तुम मेरे हजार आँसू भी नहीं देख पाते हो
हवस की खातिर आदमी होकर क्यों नर पिशाच बन जाते हो
हमें मर्यादा सिखाने वालों तुम अपनी मर्यादा क्यों भूल जाते हो
हमें मर्यादा सिखाने वालों तुम अपनी मर्यादा क्यों भूल जाते हो...!