जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
Saturday, June 22, 2013| 
न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना । 
मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना । 
करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख । 
अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना । 
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखूं हिन्दी । 
चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना । 
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की । 
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना । 
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन । 
करुं में प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना । 
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम 
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।। | 
 
 
 
 

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