चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
Thursday, May 22, 2014
चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
दिल में यादों के नश्तर से टूटा किये
एक तमन्ना कलेजा मसलती रही
चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
बदनसीबी शराफत की दुश्मन बनी
सज संवार्के भी दुल्हन न दुल्हन बनी
टीका माथे पे एक दाग बनता गया
मेंहदी हाथों से शोले उगलती रही
चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
ख्वाब पलकों से गिर कर फनाह हो गए
दो क़दम चल के तुम भी जुदा हो गए
मेरी हारी थकी आँख से रात दिन
एक नदी आंसुओं की उबलती रही
चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
सुबह मांगी तोह ग़म का अँधेरा मिला
मुझको रोता सिसकता सवेरा मिला
मैं उजालों की नाकाम हसरत लिए
उम्र भर मोम बन कर पिघलती रही
चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
चाँद यादों की पर्च्चैयों के सिवा
कुच्छ भी पाया न तनहाइयों के सिवा
वक़्त मेरी तबाही पे हँसता रहा
रंग तकदीर क्या क्या बदलती रही
चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
दिल में यादों के नश्तर से टूटा किये
एक तमन्ना कलेजा मसलती रही
चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
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